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ईंधन आपूर्ति में छेड़छाड़: तकनीकी खराबी या अंतरराष्ट्रीय साज़िश?

           प्रेस विज्ञप्ति 
        लखनऊ, उत्तरप्रदेश 

ईंधन आपूर्ति में छेड़छाड़: तकनीकी खराबी या अंतरराष्ट्रीय साज़िश?

6 जून को अहमदाबाद में हुई विमान दुर्घटना में जिस प्रकार थ्रस्ट का धीरे-धीरे कम होना और दोनों इंजनों का एक साथ निष्क्रिय हो जाना देखा गया, उससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि यह केवल तकनीकी विफलता नहीं, बल्कि ईंधन आपूर्ति में एक सुनियोजित छेड़छाड़ थी।

  1. धीरे-धीरे थ्रस्ट का घटना: यदि कोई इंजन पक्षी टकराने या यांत्रिक विफलता के कारण बंद होता है, तो वह अचानक होता है। लेकिन यदि थ्रस्ट धीरे-धीरे कम हो रहा है, तो यह स्पष्ट रूप से ईंधन की आपूर्ति रुकने की ओर संकेत करता है।
  2. एक इंजन चालू, फिर भी थ्रस्ट नहीं: बोइंग 787 जैसे आधुनिक विमानों में एक इंजन पर भी विमान लंबी दूरी तक उड़ सकता है — यदि ईंधन मिल रहा हो। यह दर्शाता है कि इंजन कार्यरत था, पर उसे ईंधन नहीं मिल रहा था।
  3. फ्यूल सप्लाई में आंशिक शेष: विमान 625 फीट की ऊँचाई तक ही पहुँच सका, जो यह दर्शाता है कि सप्लाई लाइन में शेष बचा हुआ ईंधन धीरे-धीरे समाप्त हुआ।

विशेषज्ञों का मानना है कि निम्न विकल्पों पर गंभीरता से विचार करना होगा:

  • Spar Valve को जानबूझकर बंद करना — जिससे मुख्य फ्यूल लाइन बंद हो जाती है।
  • FADEC सिस्टम को हैक करना — Full Authority Digital Engine Control के जरिये थ्रस्ट को रोका जा सकता है।
  • Firmware स्तर की तोड़फोड़ — जिसे केवल बहुत गहरी टेक्निकल एक्सेस रखने वाला व्यक्ति या समूह अंजाम दे सकता है।

पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी जैसी VVIP सवारी यदि विमान में मौजूद थी, तो यह दुर्घटना केवल तकनीकी चूक नहीं कही जा सकती। पाकिस्तान समर्थित गुप्तचर संस्थाएं (जैसे ISI) पहले भी इस प्रकार के हमलों में संदिग्ध रही हैं। इस घटना में:

  • हाई-प्रोफाइल टारगेट
  • तकनीकी परिष्कृत सैबोटाज
  • सोशल मीडिया पर संगठित दुष्प्रचार

– तीनों तत्व एक गहरे षड्यंत्र की संभावना को बल देते हैं।

भारतीय आध्यात्मिक-ज्योतिषीय परंपरा में भी देशचक्र, प्राणचक्र और सूक्ष्म संकेतों का विश्लेषण साज़िश के संकेत दे रहा है। वहीं सोशल मीडिया पर “फ्यूल थ्योरी” उठाते ही जो गालियों, खंडन और चरित्र-हत्या का दौर चला — वह truth suppression protocol की ओर इशारा करता है, जिससे वास्तविक जांच को प्रभावित किया जा सके।

जिन तकनीकी समस्याओं का पहले भी इस विमान में उल्लेख किया गया था — विशेषकर फ्यूल कंट्रोल यूनिट से संबंधित – वह यह संकेत देती हैं कि या तो उन्हें जानबूझकर नजरअंदाज किया गया या कोई बाहरी हस्तक्षेप बार-बार सिस्टम को निष्क्रिय कर रहा था।

यह दुर्घटना तकनीकी नहीं, रणनीतिक थी। इसमें जहाँ एक ओर उच्च-तकनीकी सैबोटाज की संभावना है, वहीं दूसरी ओर विमानन प्राधिकरण और निर्माताओं की भूमिका भी कठघरे में आती है।
सवाल यह है कि:

  • क्या इस विमान की समस्याओं को जानबूझकर अनदेखा किया गया?
  • क्या यह किसी अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र का हिस्सा है?
  • क्या भारतीय जांच एजेंसियों पर भी राजनीतिक या वैश्विक दबाव है?

यह समय है कि सच्चाई सामने आए।

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